बेताल और विक्रमादित्य कि कहानी। Betaal aur bikramaditya ki kahani
सहनशक्ति राजा विक्रमादित्य फिर से पेड़ के डाली से शब देह को अपने कांधे पर रखकर शमशान की तरफ चल दिए।तब बेताल बोला" राजन, मै मानता हूं कि तुम्हारे जैसा हिम्मतवाला इंसान और कोई नहीं।टॉम्हरे मनोबल का मै कदर करता हूं।तुमको एक कहानी सुनाता हूं। जो एक अजुग्य इंसान को अपनी कोमलता के गुण के कारण विवाह करते है। कहानी सुनकर चलोगे तो तुमको परिश्रम भी कम महेसूस होगी।ये बोलकर बेताल अपनी कहानी शुरू करता है......
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Betaal aur bikramaditya ki kahani |
जनकपुर राज्य का राजा था जयचंद्र।इसकी एक पुत्री थी बहत ही खूबसूरत थी इसकी नाम थी चंद्रारेखा। राजकुमारी दावा खेल मै बहत ही निपुण थी।खुद राजा भी दावा खेल मै भट ही निपुण थे और उसकी बेटी को भी इस खेल मै निपुण बनलिया था।
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राजकुमारी की बिवाह का उमर हो गई थी तो जब शादी की बात उठी तो राजकुमारी ने पिता से कहा कि "पिता" मुझे जो भी राजकुमार दावा खेल मै हराएगा मै इसी से विवाह करोंगी।साथ मै सर्त भी राखी की को पहेली बर हारेगा इसे दो चाबुक कहानी पड़ेगी।पहेली बर हारने के बात अगर दुबारा खेले और और हर जाए तो उसे सपथ खानी पड़ेगी कि वो कभी शादी नहीं करेगा। अगर तीसरी बर खेलने चहेते है और फिर से हर जाए तो इसे फासी दे दिया जाएगा। ये तीन सर्ते आप गोष्णा कर दीजिए और जो खेलना चाहते है ओसे अनुमति दीजिए।Bikram betaal ki kahani
पुत्री की ऐसी इच्छा सुनकर राजा थोड़ा चिन्तित हो गया। पर राजा को इसकी बेटी का गुस्सा से परिचित था। तो राजा ने ठीक इसी तरह गोष्ण कर दी।परी जैसी राजकुमारी चंद्ररेखा को विवाह करने के इरादे से कुछ राजकुमार आए और राजकुमारी के साथ दावा खेला।वो सब दावा खेल मै अच्छा है पर राजकुमारी के साथ हार गए। सायंभर के सर्त अनुसार दो चाबुक की मर खाकर मौन होकर चले गए।कोई भी दुबारा खेलने के लिए मांग नहीं की।
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शिलापुर के राजकुमार सुर्यशेखर को इस अनोखी सयंभर का खबर मिला।गुप्तचर के माध्यम से पहेली ही पता कर लिए थे राजकुमारी की खूबसूरती के बारे मै।लेकिन राजकुमार को दावा खेल का कोई ज्ञान नहीं था।पर राजकुमार ने ठान लिया कि उसे दावा खेल सीखना ही पड़ेगा। राज्य के सर्भरेष्ठ दावा खिलाड़ी कृष्णकुमार ।राजकुमार उसिसे दावा खेलं शिखने लगे।6 महीने लगातार खेलने से राजकुमार बहत बी निपुण हो गए थे।
एक दिन कृष्णा कुमार ने राजकुमार से कहा कि आप दावा खेल मै बहत अच्छा हो गए है। राजकुमार ने कृष्णाकुमार को बहत ही कीमती पुरस्कार दक्षिणा सरूप इसे दान दिया। और राज कुमार कनकपुर कि राज्य की तरफ यात्रा कर दिया दावा खेलने के लिए।
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राजकर्मचारी और राजा रानी के उपस्थिति मै राजकुमार को सर्त के अनुसार सपत लेना पड़ा।राजकुमार राजकुमारी के खूबसूरती को देखकर स्तंभित हो जाते है।जितनी खूबसूरती उसने सुना था राजकुमारी उससे भी ज्यादा खूबसूरत है। राजकुमारी को देखते ही राजकुमार को प्यार हो गया।खेल शुरू हुआ।राजकुमार के पर जितना खेल के बरेनौ गया था वो सब प्रयुग कर रहा था। राजकुमारी भी बहत सावधानी से अपना चल दे रही थी।बहत समय खेलने के बाद राजकुमारी राजकुमार को हरा देते है।राजकुमारी की जय मै पूरा राजमहल तालियों से गूंज उठी।सर्त के अनुसार राजकुमार को दो चाबुक कहानी परी।राजकुमार बहत वाभनाओ से राजकुमारी की और देखती रही। सब लोगो ने सोचा चाबुक खाने के बाद शायद राजकुमार अपने राज्य मै चले जाएंगे। पर ऐसा हुआ नहीं । राजकुमार दुबारा खेलने के लिए अनुमति मांगी।
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राजकुमार से पूछा कि आप जानते है अगर आप हर जायेगे तो क्या दंड मिलेंगे।तुम अपनी कुलदेवता के नाम पर शपत लेना होगा कि जिंडेगी मै कभी यूं किसी और कन्या को विवाह नहीं कर सकते। महामंत्री ने राजकुमार को सावधान कर दिया।
सर्त को फिर से दुहराने की कोई जरुरत नहीं। क्यू के दूसरी राजकुमारी को विवाह करने का सवाल ही नहीं उठता।सिर्फ आप लोगो के शांति के लिए मै प्रतिज्ञा कर रहा हो ये बलोक राजकुमार सर्यशेखर कुलदेवता महादेव के नाम पर प्रतिज्ञा लेते है।
दूसरी बार खेल शुरू हुआ। राजकुमार अपने सब कौशल स्टामल करके चल दे रहा था। किन्तु राजकुमारी शांत होकर खेल रहे थे ।जैसे प्रतिपक्ष की चिंता ही नहीं।राजकुमारी के चल और कौशलता देख कर राजकुमार हैरान हो जाते है। जब राजकुमार राजकुमारी की और दहकता तो वो सन कौशलता भूल जाते है। इसी कारण राजकुमार चल मै भूल कार दिया।राजकुमारी इस बात के फायदा उठा कर राजकुमार को फिर से हर दिया।
इस बार जरूर राजकुमार अपने राज्य मै चले जाएंगे।पर राजकुमार फिर से खेलने के लिए अनुमति मांगी।उसकी दृत्ता को देख कर सब हैरान हो जाता है। राजा जयचंद्र आगे आकर राजकुमार। से कहा "राजकुमार तुम बहती साहसी हो ये निसंदेह है बोल सकता हूं। तुम्हारे सामने पूरा भविष्य परा है।तुम राजा बैंक प्रजा कि सेवा कर सकते हो। तुम ये सब भूलकर। कमाउट के मुंह में जा रहे हो। मेरी बात मानो खेल यही समाप्त कोरो और अपने राज्य लौट जाओ।
राजकुमार ने बोला " आप मेरे पिता समान है।आपको परामर्श के लिए बहत शक्रिया। महान लोगो का कहना है जय पराजय तो होते ही है।हो सकता है इस्बार हम ही जीते।
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राजकुमारी राजकुमार की बहत ध्यान से सुन रहे थे।राजकुमार की अटलता देख कर राजकुमारी विस्मित हो जाते है।जो अपने जीवन को दांव पर लगाकर खेलना चहेते है वो बहत ही महान इंसान होगा। राजकुमारी राजकुमार की तरफ देख कर सोच रही थी। और पिता से कहा" पिता, मै पराजय स्वीकार करती हूं। ये बोलके शर्माके सर नीचे कर लिया।
उपस्थित लोगों ने ये बात सुनकर हैरान चकित हो गए।जिसको राजकुमारी ने आसानी से दो बार हरा दिया ,तो कैसे बिना खेले ही हर मान लिया।
राजा ने राजकुमारी के बात के महत्व को जान लिया।पुत्री को अभिनन्दन देकर बोला " सही समय पर सही सिद्धांत लिया है"।
बेताल अपनी कहानी ख़तम करके राजा विक्रमादित्य से पूछा " राजन जब राजकुमार पहेलीबार हरा था तभी राजकुमार समझ गया था कि वो राजकुमारी के विरूद्ध जितना असंभव है।फिर भी दूसरी बार खेलने केलिए बोला और फिर से हर गए।दूसरी बार हारने के बाद भी राजकुमार तीसरी बार खेलने के लिए दाबा किया। क्या ये राजकुमार की बेवकूफी नहीं है? शुकर है कि राजकुमारी दयालु होकर अपना पराजय स्वीकार कर लिया नहीं तो राजकुमार की फांसी निश्चिंत था। " तुम सही समय पर सही सिद्धांत लिया" राजा की ये बात भी अनुचित लगता है। बेताल ने कहा बिरमादित्य से मेरा ये संदेह का समाधान जानते हुए भी अगर तुमने जवाब नहीं दिया तुम्हारा सर फेट जाएगा।
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बेताल का प्रश्न का उत्तर में राजा विक्रमादित्य ने बोला " राजकुमार ऐसा मूर्ख नहीं था कि वो ना समझ ने सके की उसकी राजकुमारी हाथ मै हर जाएंगे। क्यू के पहेली बार हार जाने के बाद वो समाज गया था कि राजकुमारी खेल मै कितना कौशल है। राजकुमार दूसरी और तीसरी बार खेलने चहेते थे क्यू के वो राजकुमारी को सच मै पना चहेते थे। राजकुमारी के रूप और उसकी समजदारी ने राजकुमार का मन पूरी तरह से अधिकार कर किया था। राजकुमारी भी राजकुमार के मन को समझ लिए थे। राजकुमार एक युवती नारी कि में को समझ ने में डर नहीं कि। और राजकुमारी की सायमभर तो सिर्फ एक बहाना था।राजकुमारी देखना चाहिती थी कि कोई राजकुमार ऐसा हो कि उसे अपने जान के बदले उसे चाहते हो। कोई राजकुमार आए पर एकबार हारकर ही चले गए।सूर्यशेखर ऐसा एखी युवक है को हार कर भी प्रकृति रूप से पराजय स्वीकार नहीं किया। दूसरों हार कर भी तीसरी बार खेलने के लिए राजी हो गए। राजकुमारी भी अपने लिए युज्ञ पति की तलाश मै थी। जब उसकी आशा पूर्ण हुई तो पराजित ना होकर भी पराजय स्वीकार कर लिया। ये राजकुमारी की बुद्धिमानी की ही परिचय है।इसमें दया,करुणा, आदि कोई बात ही नहीं आते है। राजा ने अपने कन्या के मनोभाव को समझ ते हुए राजकुमारी को अभिनन्दन किया। दावा खेल मै हार-जीत की नहीं उस तो अपने लिए एक यूज्ञा पति की तलाश थी। इसलिए राजा ने चंद्रतेखा को अभिनन्दन किया।
राजा विक्रमादित्य की मौनता भंग मै बेताल सफल होकर अपने शब देह को लेकर फिर से पेड़ के डाली पर चले गए।
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